पिछले पांच वर्षों से मनीषा फैक्ट्रियों में काम कर रही है। उसकी उम्र 20 साल है। हाल ही में उसे खिड़की में काम मिला है। उसका परिवार बहुत परंपरागत है। परिवार वाले उसे काम पर तो जाने देते हैं लेकिन और कहीं नहीं। उसे पास–पड़ोस के लोगों से घुलने–मिलने नहीं दिया जाता। न ही वह उनके घर जा सकती है और न ही उनसे बातचीत कर सकती है। वह अपने घर की छत पर भी ज्यादा देर खड़ी नहीं हो सकती। टीवी भी ज्यादा देर नहीं देख सकती। वह पास–पड़ोस की महिलाएं के साथ कारखाने जाती है। इन महिलाओं को वह आंटी कहती है। वे सभी कारखाने जाने के लिए बस पकड़ती हैं।
लेकिन मजे की बात यह है कि मनीषा को न तो उस बस का नंबर पता है जिससे वह कारखाने जाती है और न ही वह रूट जिस पर वह बस चलती है। उसे यह भी नहीं पता कि जिस कारखाने में वह काम करती है, वह किस जगह पर है। वह अपनी आंटियों पर पूरी तरह निर्भर है। जिस कारखाने में वह काम करती है, वहां भी वह किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करती। बस अपने काम से काम रखती है। ज्यादातर वह अपने साथ काम करने वालों पर निर्भर रहती है। मनीषा के लिए मोबिलिटी का मतलब सिर्फ उसका कारखाना है। पब्लिक स्पेस भी उसे सिर्फ वहीं मिलता है। वह किसी और संभावना से बेखबर है और घर की चारदीवारी में जिंदगी काटने की आदी हो गई है। अगर उसे कहीं बाहर जाने की इजाजत मिलती भी है तो भी वह डरती है। जाहिर है, उसे परिवार की पाबंदियों में रहने की ऐसी आदत पड़ गई है कि उसमें आत्मविश्वास बचा ही नहीं है। वह रोजाना आंटियों के साथ काम पर जाती है, घर लौटती है और घर पर ही रहती है। सिर्फ अपनी बहन से अपने दिल का हाल कहती है जिसे वह अपनी सहेली और राजदार, दोनों मानती है।
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13 साल की अनीता खिड़की गांव में रहती है। यह एक टिपिकल अर्बन विलेज है जो कभी दिल्ली के बाहरी इलाके में आता था। अब इसकी कायापलट हो चुकी है। यह इलाका किसी भी कोण से ग्रामीण नहीं है और तेजी से व्यावसायिक और आवासीय हब के रूप में विकसित हो रहा है। जहां तक अनीता का सवाल है, उसे पब्लिक स्पेस खूब मिलता है। वह स्कूल जाती है। इसके अलावा, हाथ का काम सीखने के लिए वह एक सेंटर जाती है। लेकिन इन दोनों ही जगहों वह कभी अकेले नहीं जाती। उसके साथ उसकी सहेलियों होती हैं। खिड़की गांव की मेन रोड पर भी वह कभी अकेले नहीं जाती। उसकी सहेली सुमन हौज रानी में रहती है। अनीता सुमन की मां के मोबाइल पर फोन करती है, फिर अपनी मां से कहती है कि सुमन की तबीयत ठीक नहीं है। उसकी मां उसे सुमन के घर जाने की इजाजत दे देती है। फिर वह सुमन के घर जाती है।
अनीता को लगता है कि हौज रानी खिड़की से बहुत अलग है। यह इलाका बहुत भीड़–भाड़ वाला है। यहां की संकरी गलियों में अंधेरा रहता है और बिल्डिंग एक दूसरे से सटी हुई हैं। यहां हर तरह के लोग रहते हैं। कुछ उत्तर भारतीय प्रवासी हैं और कुछ विदेशी जो यहां किराये के घरों में रहते हैं। खिड़की में रहने वाले लोग मानते हैं कि हौज रानी एक बदनाम इलाका है लेकिन अनीता को यहां का माहौल पसंद है। यहां उसे पब्लिक स्पेस मिलता है इसीलिए उसे यहां घूमना अच्छा लगता है। यहां मां और रिश्तेदार उस पर नजर नहीं रख सकते। कई बार वह मां से यह कहकर हौज रानी आ जाती है कि उसे स्कूल की चीजें खरीदनी है। यह सब कहकर वह महीने में कम से कम दो बार तो हौज रानी आ ही जाती है। यहां उसे सहेलियों के साथ रंग–बिरंगी दुकानों और भीड़–भाड़ वाली गलियों में घूमने की आजादी और लुत्फ मिलता है।
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कौसर जगदंबा कैंप में रहती है। यह खिड़की–मालवीय नगर में स्थित है। 14 साल की कौसर स्कूल जाती है। स्कूल से लौटने पर वह अपनी सहेलियों के साथ खेलने की बजाय गप्प मारना पसंद करती है। उसे लोगों से बातचीत करना पसंद है और वह मानती है कि इससे उसका फायदा होता है। वह बताती है कि दूसरों से घुलने–मिलने की की वजह से वह और उसकी सहेलियां क्लासरूम और खेल के मैदान में होने वाले झगड़ों से बच जाती हैं। सुबह अक्सर क्लास में सामने वाली सीट पर बैठने को लेकर लड़कियों में झगड़ा होता है। दोपहर को खाने की छुट्टी तक यह झगड़ा चालू रहता है। खाने की छुट्टी हुई नहीं कि सभी लड़कियां एक दूसरे से बातचीत करने लगती हैं और बहसबाजी खत्म हो जाती है। पर एक दिन ऐसा नहीं हुआ। खाने की छुट्टी के समय भी बहस होती रही। झगड़ा बढ़ गया। लड़कियों में लड़ाई इतनी बढ़ गई कि सामने की सीट पर बैठने वाली लड़कियों ने पीछे की सीट पर बैठने वाली लड़कियों से बातचीत बंद कर दी। दो महीन तक यही माहौल रहा। कौसर बहुत दुखी हुई। उसकी दोस्ती तो सामने और पीछे, दोनों जगहों पर बैठने वाली लड़कियों से थी। एक दिन वह उन लड़कियों से बातचीत में मशगूल थी जो सामने की सीट पर बैठती थीं। तभी पीछे की सीट पर बैठने वाली लड़कियां वहां आ गईं। उन्हें कौसर की बात में इतना रस आया कि वे भी बातचीत में शामिल हो गईं। दोनों तरफ का झगड़ा मानो हवा हो गया। सभी हंसने लगीं, एक दूसरे से प्यार से बात करने लगीं जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।
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16 साल की रानी भी खिड़की–मालवीय नगर में स्थित जगदंबा कैंप में रहती है। मूल रूप से बिहार का रहने वाला उसका परिवार परंपरागत सोच रखता है। रानी को स्कूल जाने और अपनी सहेलियों के साथ समय बिताने की इजाजत है लेकिन उसका परिवार उसे बाहर घूमने–फिरने नहीं देता। न ही वह घर के दरवाजे पर या गली में खड़े होकर अपनी सहेलियों से बातचीत कर सकती है। वह कहती है कि घर के अलावा जिस पब्लिक स्पेस में वह सबसे ज्यादा कम्फरटेबल महसूस करती है, वह छत है। वह कहती है कि सहेलियों से मिलने के लिए छत सबसे सुरक्षित और अद्भुत जगह है। क्योंकि इस इलाके में घर एक दूसरे से सटे हुए हैं इसलिए लड़कियां एक से दूसरी छत में चली जाती हैं–और पूरे इलाके में घूम लेती हैं। उन्होंने छतों पर खूफिया जगह बनाई हुई हैं जहां सभी लड़कियां शाम को मिलती हैं। शाम को अंधेरा होने जाने के बाद भी परिवार वाले सोचते हैं कि रानी आस–पास ही है इसलिए वे उसे ढूंढने की कोशिश नहीं करते। वह अपनी आजादी पर खुश है। वह इस बात से भी खुश है कि वह एक छत से दूसरी छत पर घूमते हुए गली के आखिर तक पहुंच जाती है। कोई उस पर नजर नहीं रखता। ज्यादातर लड़कियों को घर पर मिलने, गली में बातचीत करने या घर के बाहर चबूतरे पर मिलने की बजाय छत पर घूमना पसंद है। क्योंकि यहां घर के बड़े या पुरुष उन पर नजर नहीं रख पाते। बाकी जगहों पर वे सभी की नजरों के सामने रहने को मजबूर होती हैं। मकानों की छतें उन्हें ऐसा पब्लिक स्पेस देती हैं जहां वे रिलैक्स कर सकती हैं। यह जगहें उनकी अपनी हैं इसलिए यह उनके लिए प्राइवेट स्पेस बन जाती हैं। रोजमर्रा के जीवन में उन्हें ऐसे अनूठे पब्लिक और प्राइवेट स्पेस और कहीं नहीं मिलते।