जोसफलीन से बातचीत
आप चाहें तो कहीं भी अपना ठिकाना बना सकते हैं। कैमरून की जोसफलीन ने यही किया है। 28 साल की जोसफलीन खिड़की एक्सटेंशन में पिछले एक साल से रह रही है और अपना किचन चलाती है। घर के बंद दरवाजे के पीछे से उसकी भारी आवाज सुनाई पड़ती है। लोहे के बंद दरवाजे के पीछे बना लकड़ी का दरवाजा अधखुला है और जोसफलीन किसी से फ्रेंच में जोर–जोर से बात कर रही है। यह कोई और नहीं, उसका दोस्त मार्क है। मार्क जोसफलीन का हर हाल में साथ देता है।
जोसफलीन को फ्रेंच आती है। यह उसकी मातृभाषा है लेकिन दिल्ली में सिर्फ फ्रेंच आने से काम नहीं चलता। अगर किसी को हिंदी न भी आती हो तो कम से कम अंग्रेजी तो आनी ही चाहिए। जोसफलीन अंग्रेजी सीख रही है। टूटी–फूटी अंग्रेजी में ही वह लोगों से बातचीत करती रहती है। लोगों से मिलना, बातें करना उसे पसंद है।
खिड़की में रहने वाले अफ्रीकियों के लिए जोसफलीन किचन चलाती है। उसका किचन सुबह सात बजे खुल जाता है और देर रात तक चलता रहता है। ज्यादातर वह नाइजीरियाई और उगांडा के व्यंजन बनाती है। कैमरून के व्यंजन वह कम ही बनाती है क्योंकि उसके अपने देश के बहुत कम लोग यहां रहते हैं। अफ्रीकी ग्राहक उसके किचन में खाने का आर्डर देते हैं, कई बार वहीं बैठकर खाते हैं और कई बार पैक करके ले जाते हैं।
खाना बनाने का सामान खरीदने के लिए जोसफलीन अक्सर आईएनए मार्केट जाती है। वह कहती है कि यह दिल्ली का सबसे अद्भुत मार्केट है। हालांकि यह उसके घर से काफी दूर है। यहां उसे हर किस्म का मीट, मछली और अफ्रीकी खाद्य मिल जाता है। यह सब उसे किसी और मार्केट में नहीं मिलता। जोसफलीन बताती है कि भारत और कैमरून के खानों में फर्क है लेकिन कुछ मायने में दोनों मिलते–जुलते हैं। भारत के बाजार भी कैमरून के बाजारों जैसे ही हैं।
वैसे जोसफलीन भारतीय संस्कृति, खासकर यहां के खाने को बहुत प्यारर करती है। इसी के वजह से वह भारत आई है। शुरुआत में उसे लोकल गुंडों और पुलिस वालों ने बहुत तंग किया। जिस इलाके में वह रहती है, उसे वह इलाका ही छोड़ना पड़ा। फिर उसने मालवीय नगर के कृष्ण मंदिर के पास एक फ्लैट किराये पर ले लिया। अब वह खुश है क्योंकि यहां उसे कोई परेशान नहीं करता। उसकी निजी जिंदगी में दखल नहीं देता। वह कहती है कि भारतीय लोग बहुत अच्छे होते हैं लेकिन अफ्रीकियों से थोड़ा कम घुलते–मिलते हैं। यह बात उसे बहुत चुभती है।