हिना, एंटरप्रेन्योर
जिस उम्र में दूसरी लड़कियां अपनी सहेलियों के साथ मौज–मस्ती करती हैं, मैंने उस उम्र में अपने परिवार के लिए कमाना शुरू कर दिया था।
मेरा बचपन उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में बीता। वह हादसा मैं कभी नहीं भूल सकती। एक बार होली पर कुछ लड़कों की शरारत में पत्थरबाजी की और पत्थर के कुछ टुकड़े मेरी आंखों में लग गए। मेरी आंखों की रोशनी चली गई। अब्बू को मेरे इलाज के लिए अपना मकान बेचना पड़ा। हम इलाज के लिए दिल्ली आ गए। यहां इलाज तो हुआ लेकिन मेरी बाईं आंख में रोशनी दोबारा नहीं आई। दिल्ली में मैंने 12 वीं तक की पढ़ाई की और फिर काम करने लगी। हमारी माली हालत बहुत खराब थी। मेरे अब्बू की जमा–पूंजी खत्म हो गई थी और हम बहुत गरीबी के दिन काट रहे थे। अब्बू की कमाई से घर नहीं चलता था इसलिए मैंने मालवीय नगर की एक गिफ्ट शॉप में काम करना शुरू कर दिया। 2003 में मेरी शादी हुई, तब तक मैं उसी दुकान पर काम करती थी।
उत्तर प्रदेश से दिल्ली से आने पर हम काफी समय तक हौज रानी में रहे। मैं हमेशा चाहती थी कि अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं। मेरा अपना घर हो। मुझे किसी के सहारे न जीना पड़े।
अपनी दुकान खोलने का सपना मैं इसलिए देखती थी क्योंकि मैं आत्मनिर्भर होना चाहती थी। पति की कमाई के अलावा मेरी अपनी भी कमाई हो। ताकि मैं आजादी से, अपने मन से खर्च कर सकूं। दूसरी बात यह कि मैं अपनी बेटियों की जरूरतों को पूरा कर सकूं। उनके लिए मैंने जो सपने देखे हैं, उन्हें पूरा कर सकूं। साथ ही मेरा अपना घर हो।
चूंकि मैं गिफ्ट शॉप पर काम कर चुकी थी इसलिए मैंने 2013 में खिड़की एक्सटेंशन में अपनी गिफ्ट शॉप खोली। मैं पुरानी दिल्ली में सदर बाजार के होलसेल मार्केट से सामान खरीदकर लाती हूं। कभी–कभी मैं अकेले सामान लेने जाती हूं। कभी अपने पति के साथ। लेकिन मैं उनका रूटीन खराब नहीं करना चाहती इसलिए अकेले ही चली जाती हूं। मैं ज्यादातर ऑटो ले लेती हूं। कभी मेट्रो से सामान लेकर आती हूं। मेरी दुकान अच्छी चलती है। यहां आस–पास के लोग आते हैं, दूर के भी। मेरी दुकान आस–पास की औरतों के लिए बातचीत–गपशप का अड्डा भी है। मुझे भी औरतों का आना और गपशप करना पसंद है क्योंकि सारा दिन दुकान में बैठे–बैठे मैं बोर भी हो जाती हूं। हम सब मिलकर बातें करते हैं। नाश्ता करते हैं। कभी फिल्मों के बारे में बात करते हैं, कभी मोहल्ले की। मुझे इस बात का फख्र है कि मैं अपना बिजनेस करती हूं और अपनी आजादी से खुश हूं। हमारे मोहल्ले के मर्द जरा ज्यादा ही फ्रेंडली हैं लेकिन मैं इस बात की परवाह नहीं करती कि वे लोग मेरे रहने–सहने के तरीके पर कमेंट करते हैं या उन्हें मेरी आजाद ख्याल जिंदगी से प्रॉब्लम है। मेरे पति खुश रहते हैं और मेरे काम में दखल नहीं देते। मैं उनसे पैसे नहीं मांगती। मैं उनके साथ खुश हूं लेकिन मैं अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती हूं। मुझे उनके जीने के तरीके से कोई प्रॉब्लम नहीं। बस, मैं खुद पैसे कमाना चाहती हूं– उनसे पैसे नहीं मांगना चाहती। शादी के बाद मेरी तीन बेटियां हुईं। लेकिन मैं अपनी जिंदगी और अपने काम के बीच बैलेंस बनाए रखा।
अपनी खुद की जिंदगी से मैंने सीखा है कि कोई औरत तब तक आजादी से नहीं रह सकती, जब तक वह खुद न कमाती हो। औरतों को आर्थिक स्तर पर आत्मनिर्भर होना चाहिए। मेरे मोहल्ले के लोग मेरी इज्जत करते हैं, मेरी मदद भी करते हैं। इसके अलावा मैंने यह भी देखा है कि किसी के मातहत काम करना, और खुद का काम करना, दोनों बहुत अलग–अलग बातें हैं। मालवीय नगर की जिस दुकान में मैं काम करती थी, उस दुकान के बॉस और साथ काम करने वाले मर्द बहुत रूड थे। वो लोग इस तरह का बर्ताव करते थे जैसे दुनिया की सारी औरतें बेवकूफ होती हैं। वो लोग मेरे काम करने के तरीके पर, मेरे कपड़ों पर, मेरे व्यवहार पर भी टोका–टोकी करते थे। लेकिन अपनी दुकान में मैं ही बॉस हूं। कुछ भी कर सकती हूं। इसीलिए मैं खुद का काम करना चाहती हूं। यहां कोई मेरे ऊपर कोई नहीं है। कोई मुझे सिखा–पढ़ा नहीं सकता। मेरे पति भी नहीं। दुकान चलाते समय मैं बहुत खुश रहती हूं।
वैसे इस समय मैंने अपनी दुकान को किराये पर दिया हुआ है। मेरी जुड़वां लड़कियां छोटी हैं और उनकी देखभाल के लिए मुझे काफी समय चाहिए। मैं घर काम भी करती हूं। खाना भी पकाती हूं। पति का ध्यान भी रखना होता है। इस सबके बाद मैं बहुत थक जाती हूं। इसलिए मैंने एक जानकार को दुकान किराये पर दी है। मैं फिलहाल आराम फरमा रही हूं। जब मेरी बच्चियां स्कूल जाने लगेंगी तो मैं अपनी दुकान फिर से चलाने लगूंगी। मैंने एक साल के कॉट्रैक्ट पर दुकान किराये पर दी है।
एक औरत के तौर पर मैं खुद पर भरोसा करती हूं। दूसरा कोई कुछ भी सोचे, लेकिन मुझे इस बात का यकीन है कि मैं जो हासिल करना चाहती हूं, वो हासिल करके रहूंगी। चाहे वह अपना मकान बनाने का सपना हो या दुकान चलाने का।