एक बार फिर जिंदगी बदली है

फरजाना, मेकअप आर्टिस्ट

मेरा बचपन अफगानिस्तान में बीता, जहां मैं अपने परिवार के साथ हंसीखुशी रहती थी। मेरे परिवार में अम्मीअब्बू के अलावा बहनें और एक भाई था। मेरे मातापिता अमीर थे और हमारी जिंदगी खुशहाल थी। हम स्कूल जाते, दोस्तों के साथ खेलते, खूब मजे करते। वे दिन हमेशा यादगार बने रहेंगे।

धीरेधीरे अफगानिस्तान के सियासी हालात बदले और सोशल लाइफ भी। पब्लिक स्पेसेज खत्म होने लगे और अफगानों की जिंदगी तकलीफदेह होती गई। कहीं आनाजाना मुश्किल होता गया। नौकरियां, सोशल लाइफ, पढ़ाईलिखाईरोज ब रोज सब कुछ बर्बाद होता गया।

मेरा परिवार भी इस हालात से अछूता नहीं रहा। अब्बू के इंतकाल के बाद जिंदगी जैसे एक पल में बदल गई। मेरी अम्मी की और हमारी जिंदगी बेमतलब सी हो गई। लेकिन अम्मी ने उम्मीद नहीं छोड़ी। वह नहीं चाहती थीं कि हमारी जिंदगी खराब हो। इसलिए वह हमें स्कूल और कॉलेज भेजती रहीं। हालात कितने भी वॉयलेंट, बेरहम क्यों न हुए हों।

कॉलेज के बाद मेरी बड़ी बहन मीडिया से जुड़ गई। फिर मैंने भी इसी फील्ड में काम करना शुरू किया। मैं कल्चरल प्रोग्राम के लिए काम करती थी। लेकिन हमारी नौकरी हमारे शहर के मर्दों को रास नहीं आई। अफगानिस्तान में मर्दों का यह आम रवैया है कि वो किसी यंग लड़की को मीडिया में काम करते नहीं देख सकते। वो यह नहीं देख सकते कि पब्लिक के बीच लड़कियां नजर आएं। मौजूदा सियासी जमात पर भी इसका बहुत असर पड़ता है। हम ऐसे लोगों का निशाना बने। वो लगातार हमें परेशान करने लगे। कभी हमें धमकी भरे फोन कॉल आते। कभी लेटर बॉक्स में नोट मिलते। हमसे कहा जाता कि हमें ऐसी नौकरियां छोड़ देनी चाहिए जो औरतों के लिए दुरुस्त नहीं हैं। मेरी अम्मी ने हमेशा इस बात की खिलाफत की और हमसे कहा कि हमें अपनी नौकरियां नहीं छोड़नी चाहिए। एक दिन हमें बहुत खतरनाक तरीके से धमकाया गया। तब रिश्तेदारों और आसपड़ोस के लोगों ने अम्मी से कहा कि वह जिद छोड़ दें। हालात बदतर हो चुके थे। एक दिन हमने अपनी बचपन की यादों और उस खूबसूरत शहर को छोड़ देना का फैसला किया। हम आधी रात को चोरों की तरह घर से निकले। हमें नहीं पता था कि हमें कहां जाना है। अभी हम एयरपोर्ट जाने के लिए निकले ही थे कि कुछ अनजान लोगों ने हमारी बस का रास्ता रोक दिया। फिर हमसे तरहतरह के सवाल करने शुरू कर दिए। हमारी बस में और लोग भी थे। सभी खौफजदा थे। लेकिन हमारे ड्राइवर ने समझदारी से काम लिया। उसने उन अनजान लोगों से कहा कि हम सभी एक गांव के हैं और दूसरे गांव जा रहे हैं। उसने उन्हें समझाया कि वो लोग जिन्हें ढूंढ रहे हैं, वो हम लोग नहीं हैं। किसी तरह से बचते हुए हम पुलिस स्टेशन पहुंचे और अपना पासपोर्ट और वीजा लिया। इसके बाद हम भारत पहुंचे। यह साल 2011 की बात है। तब यह देश हमारे लिए एकदम अनजान था।

भारत पहुंचने के बाद मेरी अम्मी ने सबसे पहले यूएनएचसीआर से कॉटैक्ट किया। उन्होंने हमें खिड़की एक्सटेंशन में किराये का एक घर दिलवाया। यह पहली बार था कि हम अफगानिस्तान से दूर किसी नई जगह पर आए थे। यहां तो हम जैसे गुम से हो गए थे। यह शहर बहुत कंजेस्टेड और भीड़भाड़ वाला है। यहां के लोग हमारे लिए बिल्कुल अनजान थेहमारे शहर के लोगों से बहुत अलग। पहलेपहल तो हमें खिड़की में बहुत अच्छा लगा। यह जगह कोजी और फ्रेंडली लगी। लेकिन एक दिन एक भयानक हादसा हुआ। मेरा पांच साल का भाई बालकनी में खड़ा होकर दूसरी बालकनी में खड़े एक अफगान बच्चे से पर्शियन में बात कर रहा था। तभी एक आदमी ने चिल्लाकर उन्हें बात करने से रोका और फिर बोला कि हम यहां पर्शियन में बात नहीं कर सकते। हमें तुरंत इस कॉलोनी को छोड़कर चले जाना चाहिए। इसके बाद यहां के लोगों ने अफगान फैमिलीज को गालियां देना शुरू कर दिया। उस रात को हमारे घर के दरवाजे पर दस्तक हुई। मेरी अम्मी और बड़ी बहन यह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या बात हुई है। दस्तक तेज होती गई। मेरी अम्मी ने मेरी बहन से कहा कि वह मुझे, मेरी दो बहनों और मेरे भाई को कमरे के अंदर बंद कर दें। फिर मेरी अम्मी ने दरवाजा खोला। बाहर कुछ लोकल लोग खड़े थे। वो लोग मेरे भाई को पीटने आए थे क्योंकि वह पर्शियन में बात कर रहा था। मेरी अम्मी ने किसी तरह उन्हें धक्के देकर बाहर किया। फिर उन्होंने हमारे घर की बालकनी पर पत्थर, टूटे हुए कांच, लकड़ी के फर्नीचर फेंकने शुरू किए। हमारे पड़ोस में रहने वाली अफगान फैमिली ने पुलिस में शिकायत की। पुलिस कुछ देर से आई और हमसे कहा कि इस सब बवाल के पीछे हम लोग खुद जिम्मेदार हैं। फिर हमसे मुआवजे के तौर पर पैसे भी मांगने लगी। इसके बाद पुलिस ने कहा कि हमारे लिए ज्यादा अच्छा यह रहेगा कि हम पुलिस फ्लैट्स में रहें। वहां हमें किराया भी नहीं देना होगा। मेरी अम्मी ने यूएनएचसीआर में शिकायत की। उन्होंने पुलिस से कहा कि उन्हें हमारी हिफाजत करनी होगी क्योंकि हम इसके हकदार हैं। लोकल पुलिस इस बात से नाराज हुई। उसने हमसे कहा कि हमें अच्छी तरह से बर्ताव करना चाहिए और यूएनएचसीआर में बारबार जाकर शिकायत नहीं करनी चाहिए। लोकल गुंडों ने लोकल मर्दों से हमें परेशान करने को कहा था। फिर आसपड़ोस में रहने वाली आंटियों ने हमसे कहा कि हमें यहां से दूसरी जगह चले जाना चाहिए। हम सभी बहनें देखने में सुंदर हैं इसलिए हमें खिड़की और हौज रानी के कंजरवेटिव मर्दों से दूर ही रहना चाहिए।

फिर हमने दूसरी गली में नया मकान किराये पर ले लिया। मैंने और मेरी छोटी बहनों ने खिड़की में बोस्को रेफ्यूजी सेंटर में दाखिला ले लिया। यहां रेफ्यूजीज को स्किल बेस्ड काम, जैसे कंप्यूटर और लैंग्वेज वगैरह सिखाया जाता है। वहां मैंने हिंदी सीखी और मेकअप आर्टिस्ट बनने का काम भी। हमने कुछ ही सालों में बहुत कुछ अलगअलग सीख लिया। फिर मेरी बड़ी बहन की शादी हो गई और वह कनाडा चली गई।

हमारी माली हालात बहुत खराब थी क्योंकि हमारे सेविंग्स खत्म हो गए थे। इसलिए मैंने और मेरी बहन मैक्स अस्पताल में ट्रांसलेटर का काम करना शुरू कर दिया। यह अस्पताल प्रेस इंक्लेव रोड के सामने पड़ता है।

एक अफगानी मरीज के लिए पर्शियन में इंटरप्रेटेशन करने के लिए मुझे रोज के 500 रुपये मिलते थे। पर लड़कियों के लिए इस तरह का काम करना कई बार काफी तकलीफदेह होता है। कई बार लोग हमें पैसे देकर अपने साथ वक्त बिताने या अपने साथ एक्सकॉर्ट करने का ऑफर देते। इसलिए हमने यह काम छोड़ दिया और हम मेकअप आर्टिस्ट बन गए। एक दिन मैं और मेरी बहन साउथ दिल्ली के एक मेकअप कॉम्पीटीशन में गए और फर्स्ट आए। वहां लोगों को हमारा काम बहुत पसंद आया। उन्होंने हमसे कहा कि हम उनका फेसबुक पेज देखें और उनसे कॉन्टैक्ट करें। अब हमें अच्छा काम करने का मौका मिल रहा है। जिन लोगों के साथ हम काम करते हैं, वो बहुत अच्छे हैं और औरतों के तौर पर हमारी इज्जत करते हैं।

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