ग्रेटर कैलाश जैसी जगह में माहौल ख़राब हो सकता है, तो…

रितु से बातचीत

आप यहां खिड़की में कब से हैं?

मैं दिल्ली में 17 सालों से हूं। वैसे हम नेपाल के हैं। पहले मदनगीर में रहते थे। वहां से हम यहां आए। मैं शुरू से दिल्ली में रही हूं। मेरी पढ़ाई भी दिल्ली में हुई है। मदनगीर से यहां का रास्ता आधे घंटे का है।

आप यहां कब आईं?

मैं यहां शादी के बाद आई।

जब आप यहां शादी के बाद आईं तो यह जगह आपके लिए क्या बिलकुल अनजान थी?

हां, अनजान ही थी। लेकिन अब मेरा परिवार भी खिड़की में रहता है। पहले वे लोग यहां नहीं रहते थे। शादी के बाद हमने एक फ़्लैट लिया। फिर अपने परिवार वालों को एकएक करके यहां बुला लिया। अब हमारे लिए अच्छा है। हम एक दूसरे से मिलते रहते हैं। साथसाथ टी पार्टी भी करते हैं।

टी पार्टी का क्या मतलब है?

हम पांचछह सालों से यहां रहते हैं। यहां मैं अपने घर पर अपने परिवार वालों के साथ कमिटी डालती हूं। इसके लिए महीने में एक बार हम सब मिलकर टी पार्टी करते हैं।

आपने यह कमिटी का काम कैसे शुरू किया?

जैसा कि मैंने आपको बताया, मेरे परिवार वाले यहीं आसपास रहते हैं। फिर मेरे कई फ्रेंड्स भी आसपास रहते हैं। मैंने सबसे कहा कि हमें एक कमिटी बनानी चाहिए। मैंने सबकी राय ली। सभी को यह अच्छा लगा। बस, कमिटी बन गई। इस बहाने हम महीने में एक बार जरूर मिलते हैं, टी पार्टी करते है और कमिटी खोलते हैं।

यह कमिटी चलती कैसे है?

हमने 20 लोगों का एक ग्रुप बनाया है। इसमें हर एक शख्स पांच हजार रुपये का शेयर डालता है। फिर हम हर महीने किसी एक तारीख को पार्टी करते हैं। पार्टी में सभी के नाम की पर्ची डाली जाती है। उस पर्ची में किसी एक का नाम निकाला जाता है और उसे जमा किए गए एक लाख रुपये दे दिए जाते हैं। जिसे रुपये मिलते हैं, वह मिठाई खिलाता है। फिर हम पार्टी करते हैं। अगले महीने किसी और के नाम की पर्ची निकाली जाती है। जिसे पहले रुपये मिल गए होते हैं, उसके नाम की पर्ची नहीं निकाली जाती। फिर यह सिलसिला 20 महीने तक चलता है।

यानी सभी लोग जानपहचान के हैं।

हां, ज्यादातर मेरे फैमिली मेंबर हैं और कुछ स्कूल के दोस्त हैं। हमने सिर्फ अपने लोगों को कमिटी में रखा है, क्योंकि आजकल सभी को पैसों का टेंशन है। इसलिए मेरे भाई, बुआ, दोस्त वगैरह सब यही आ जाते हैं। मुझे इतना टाइम नहीं मिलता कि मैं कहीं और जाऊं, इसलिए मेरे घर पर ही हम सब एक साथ टी पार्टी कर लेते हैं।

आपको यह आइडिया कैसा आया?

मैंने सभी से पूछा, सभी की राय ली। हर कोई चाहता है कि कुछ पैसे बच जाएं। आजकल बचत करना बहुत मुश्किल है। इस तरह हम एक दूसरे की जरूरत को भी पूरा कर देते हैं और कुछ पैसे भी हाथ में आ जाते हैं। एक बार एक शख्स को एक लाख रुपये देते हैं। फिर वह 20 महीने तक हर महीने पांच हजार देता रहता है, जैसे बैंक में इंस्टॉलमेंट देते हैं। इस तरह से सेविंग भी हो जाती है। हमने अपने परिवार में कमिटी बनाई है क्योंकि परिवार के लोगों पर एक भरोसा होता है। इस तरह एक दूसरे की हेल्प भी हो जाती है। किसी को अगर अचानक पैसों की जरूरत पड़ती है तो वह सभी से बात कर लेता है। ऐसे में उसकी कमिटी निकाल दी जाती है। जैसे अगर किसी को घर बनाना है या कोई चीज खरीदनी है तो उसकी मदद भी हो जाती है।

आप एक दूसरे के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं।

वैसे मैं बाहर कम ही जाती हूं। मेरे पति का लोगों से मिलनाजुलना ज्यादा है। मेरे बच्चे अपने दोस्तों के साथ दशहरा देखने जाते हैं। मैं अपने परिवार वालों के साथ त्योहार ज्यादा मनाती हूं। बच्चे भी दोस्तों के साथसाथ अपनी नानीनाना के साथ त्योहार मनाते हैं। मामाबुआ के घर जाते हैं।

क्या आप पहले कहीं काम करती थीं?

नहीं मैं घर में ही रहती हूं। घर की देखभाल करती हूं। मैं दसवीं पास करके घर में ही रही और फिर शादी के बाद भी परिवार की जिम्मेदारी संभालने लगी।

छुट्टी के दिन आप क्या करती हैं?

शनिवार और रविवार को हम चाणक्य पुरी जाते हैं। वहां मोमोज़ खाते हैं। या फिर इंडिया गेट या कुतुबमीनार जाते हैं। बच्चों के स्कूल की छुट्टियां होती हैं तो हम दूसरे शहर भी घूमने जाते हैं। पिछली बार हम देहरादून गए थे।

खिड़की में कहांकहां जाते हैं? यहां का माहौल कैसा है?

लोग कहते हैं कि खिड़की में माहौल खराब है। लेकिन यहां इतनी गड़बड़ी भी नहीं है। पहले सुनने में आता था कि यहां ‘अफ्रीकन ल®गों’ का डर है। लेकिन अब कोई टेंशन नहीं है। जब ग्रेटर कैलाश जैसी जगह में माहौल ख़राब हो सकता है, तो किसी और इलाके के बारे में क्या कहना।

अच्छा तो आप कभी हौज रानी गई हैं? वहां कैसा लगता है?

हां, सुनने में आता है कि वहां का माहौल ख़राब है। मेरा मानना है कि अगर हम खराब हैं तो हमें दूसरे लोग भी खराब मिलेंगे। हम सही हैं तो दूसरे भी हमें सही मिलेंगे। हां, यह जरूर है कि वहां की गलियां बहुत छोटी हैं और वहां अंधेरा भी रहता है।

आप जब से खिड़की में रह रही हैं, तब से यहां का माहौल कैसा है? यहां की लड़कियां बहुत तेजतर्रार हैं?

यह जगह लड़कियों के लिए बहुत अच्छी है। ऐसी जगह मैंने कहीं नहीं देखी। यहां लड़कियां हर चीज में आगे हैं। हर चीज में एक्सपर्ट हैंबोलनेचालने में। धड़ल्ले से इंग्लिश बोलती हैं। यहां बहुत सी लड़कियां पीजी में रहती हैं। ज्यादातर बिंदास हैं। ऐसा कोई टेंशन नहीं है। रात को 11 बजे भी कहीं आजा सकते हैं। यहां का माहौल मुझे बहुत सुरक्षित लगता है। लोग कहते हैं कि मालवीय नगर अच्छा इलाका नहीं है लेकिन मुझे यहां डर नहीं लगता। मेरे ख्याल से तो अपना मालवीय नगर बेस्ट है।

आप यहां लगभग 17 सालों से हैं। क्या आपको पहले के माहौल और अब के माहौल में कोई फर्क नजर आता है?

जब हम यहां आए, मदनगीर की लड़कियों तब भी बहुत बोल्ड थीं और आज भी वहां की लड़कियां बिंदास और बोल्ड हैं। खिड़की में भी ऐसा ही माहौल है। हां, पहले इतना जरूर था कि लोगों में कॉम्पिटीशन कम था। अब लोगों में एक दूसरे से आगे निकलने की भावना है। इतना बदलाव तो आया है। आज हर कोई पैसे कमाना चाहता है। खिड़की में खुलापन बहुत है। इसीलिए मुझे यहां आकर बहुत अच्छा लगा।

इन 17 सालों में लोगों में भी बदलाव आ गया है। नए लोग आ गए हैं। कई नई जगहें बन गई हैं। मॉल, अस्पताल, दुकानें, बहुत कुछ नया बन गया है। बाजारों में भीड़ बढ़ गई है। आबादी बढ़ गई है। कल्चर भी बदल गया है। लोग तेजतर्रार हैं। लेकिन मुझे यह सब अच्छा लगता है। इस इलाके में सेफ्टी भी है। जैसे मैं अपनी बहन के घर जाती हूं जो छतरपुर में रहती है तो अगर हमें घर लौटते हुए 12 भी बज जाते हैं तो यहां चहलपहल रहती है। रोशनी रहती है। किसी किस्म का डर नहीं लगता। टेंशन नहीं होती। लगता है, जैसे सभी लोग अपने हैं।

Comments are closed.

Create a website or blog at WordPress.com

Up ↑

%d bloggers like this: