शबीनाजी की ज़ुबानी
मैं अपने पति से अपने हक़ के लिए लड़ रही हूं। शादी के बाद पति और ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया। क्या वह घर मेरा नहीं था? अब कोर्ट में हमारे तलाक का केस चल रहा है। हर बार तारीख पड़ती है और मैं और मेरे पति वहां जाते हैं। मैं कोर्ट में इस लड़ाई को तब तक लडूंगी जब तक कि मुझे मेरा हक़ नहीं मिल जाता।
आप पूछेंगे कि कैसा हक़? बीवी होने का हक़। उन्होंने मुझे घर से निकल दिया। मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया। मेरे साथ मार–पीट भी की। अब कोर्ट में मैंने तलाक के साथ–साथ मेनटेनेंस भी मांगा है। मैं चाहती हूं कि मेरे साथ बुरा बर्ताव करने वालों को सजा मिले ताकि फिर कोई किसी के साथ ऐसा न करे। ऐसा बर्ताव करने की किसी की हिम्मत न हो। मैं सिर्फ अपने लिए नहीं लड़ रही। हर लड़की के लिए लड़ रही हूं। उन्हें सजा मिलेगी तो दूसरे लोगों को भी सबक मिलेगा। उन्हें पता चलेगा कि नारी की इज्जत करनी चाहिए, उसे समझना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए।
शादी के बाद मुझे मेरा ससुराल अच्छा नहीं लगता था। मेरा पति खाने–पीने वाला था। मैंने शादी के बाद भी नौकरी जारी रखी। लेकिन मेरा पति कुछ नहीं कमाता था। लेकिन मुझे इस बात का मलाल नहीं था। मलाल इस बात का था कि वह मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव करता था। बदतमीज़ी से बोलता था। मार–पीट करता था। पीना–खाना अलग से। उस पर भी, रोज लड़ाई करके मुझे घर से बाहर निकाल देता था। उसकी बुरी आदतें मुझे बर्दाश्त नहीं थीं। पर मैंने उसके साथ छह–सात साल तक निभाया। मैंने ससुराल वालों से कहा कि उसे समझाएं। लेकिन वे लोग भी उसे सुधार नहीं पाए। बल्कि वे भी जहालत भरी बातें करते। ससुर–सास, देवर सभी एक जैसे थे।
आज मैं जिस मोड़ पर हूं, उस मोड़ पर मेरे साथ, मेरी अपनी हिम्मत है। मेरे पति ने मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया। इसलिए मैंने उसका घर छोड़ दिया। आज मैं अपनी खुशी के लिए, अपने हक के लिए लड़ रही हूं। संघर्ष कर रही हूं। पढ़ाई–लिखाई की वजह से ही मुझमें यह विश्वास आया है कि मैं अपने बूते पर खड़ी हूं।
बहुत सी महिलाओं को कानून की कोई जानकारी नहीं होती। क्योंकि वे कुछ नहीं जानतीं, इसलिए एक दूसरे से ही पूछती हैं। कई बार पति से हार जाती हैं। कई बार उन्हें बेवकूफ बनाया जाता है। अगर महिलाएं पढ़ी–लिखी होंगी तो उन्हें किसी से पूछताछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वे अपने केस के बारे में बहुत सी बातें, अपनी दिक्कतें खुद लिखकर दे सकती हैं। अदालत में जज के सामने पेश होने पर वे पूरे विश्वास के साथ अपनी बात कह सकती हैं। बोल सकती हैं। वकील के साथ सवाल–जवाब करने में भी उन्हें किसी किस्म का संकोच नहीं होगा। बेशक, वकील हमारी तरफ से बोल रहा होता है लेकिन फिर भी हम कई बार उसके सवालों, तरीकों को समझ नहीं पाते। ऐसे में वकील हमें कैसे सपोर्ट कर सकता है।
जब मैं पहली बार कोर्ट में गई तो कुछ समझ नहीं पा रही थी। शुरू में काफी अजीब सा महसूस हुआ। मुझे डर भी लग रहा था कि क्या करूं, क्या कहूं। बहुत घबराहट थी उस समय।
मेरा केस तीन साल से चल रहा है। शुरू में मैं
सोचती थी कि क्या करूंगी, कैसे करूंगी। लेकिन ऊपरवाले ने मेरा साथ दिया। वही बात है कि हमें खुद पर भरोसा होना चाहिए। इसमें मेरी एजुकेशन काम आई। शुरू–शुरू में मैं जब वकील से बात करती थी, तो मुझे घबराहट होती थी। लेकिन फिर यह घबराहट दूर हो गई। मैं पढ़ी–लिखी थी। वकील की बातों को जल्द ही समझ लेती थी। इसलिए शुरू में जो भी टेंशन थी, वह बाद में नहीं रही। बस, मेरे अंदर से एक आवाज आई कि मुझे अपने हक़ के लिए लड़ना है। अपने विरोधियों की चुनौती को स्वीकार करना है। बस जैसे–जैसे वकील मुझे समझाते गए, मैं वैसा–वैसा करती गई। अब मैं अदालत में जाती हूं तो मुझे कोई डर नहीं लगता। मुझे किसी का खौफ़ नहीं है। अब मैं जज के सामने बेझिझक होकर, सभी सवालों के जवाब देती हूं और जब मेरा पति मेरे सामने आता है तो मुझे कोई बेचैनी नहीं होती।
लोग मुझसे कहते हैं कि लड़की होकर तुम कोर्ट–कचहरी के चक्कर लगाती हो? अरे लड़की हैं तो क्या हुआ? क्या हम अपना हक़ छोड़ दें? लड़ना छोड़ दें? मर्द है तो उसकी बदतमीज़ी बर्दाश्त करें। वह कुछ भी गलत कर सकता है? भगवान ने उसमें ऐसा क्या खास बनाया है? वह मर्द होकर लड़ सकता है तो क्या मैं औरत होकर नहीं लड़ सकती? मैं क्यों न लड़ूं? मैं भी अपने हक़ के लिए लडूंगी। मैं भी उसे दिखा दूंगी कि वह गलत है। मैं उसे गलत साबित करके दिखा दूंगी। मैं अपने हक़ के लिए लडूंगी– हर हाल में लडूंगी। इसलिए आज भी मैं अपनी हिम्मत से खड़ी हूं कि मुझे अपने हक़ के लिए लड़ना है।
पिछले तीन सालों में और लड़कियों को भी कोर्ट में अपना केस लड़ते देखा। बहुत महिलाएं और लड़कियां भी ऐसे हालात से गुजर रही हैं। कुछ ऐसी भी हैं जो घरेलू तौर पर मजबूर और गरीब हैं। वे वकीलों की हां में हां मिला देती हैं। जो वकील ने कह दिया, वही सुन लिया। इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होता। कुछ ऐसी औरतें भी हैं जो अदालत जाकर रोने लगती हैं। वे डर जाती हैं। उनकी इस कमजोरी का फायदा दूसरा पक्ष उठाता है। औरत के घरवाले उससे कहते हैं कि कोर्ट–कचहरी में केस करना बेकार है। इस तरह दोनों के बीच समझौता करा दिया जाता है। मैंने ऐसे बहुत से केस देखे हैं। मुझे एक केस याद है। एक बार एक लड़की अदालत में आते ही डर गई और कांपने लगी। जोर–जोर से रोने लगी। उसने घबराहट में कहा कि उसे केस नहीं करना। उसे लग रहा था कि अगर उसने केस किया तो पति उसे मार डालेगा। इस वजह से वह अदालत में बोल नहीं पा रही थी। उसके अंदर बिल्कुल हिम्मत नहीं थी। वह ज्यादा पढ़ी –लिखी भी नहीं थी। बस, एक घरेलू लड़की थी– एकदम घर में रहने वाली। इस वजह से वह मेजिस्ट्रेट के सामने आते ही कांपने लग गई। लेकिन ऐसे केस भी हैं जिनमें लड़कियां डरने के बावजूद हिम्मत जुटाती हैं और अपने हक़ के लिए लड़ती हैं।
एक बार मैं पुलिस स्टेशन भी गई थी। वहां जो इंस्पेक्टर था, वह एक महिला से तू–तड़ाक कर रहा था। हर बात का उल्टा जवाब दे रहा था। मैं सब देख–सुन रही थी। वह महिला इंस्पेक्टर के सामने चुपचाप खड़ी थी। इंस्पेक्टर ने कहा कि केस करके क्या होगा? तू तो अपने गांव चली जा। महिला रोने लगी। इंस्पेक्टर से बोली, ठीक है। मैं अपने गांव चली जाती हूं। इसके बाद इंस्पेक्टर मुझसे बात करने लगा। मैंने भी हौसला बनाए रखा।
शुरुआत में उसने मेरे साथ भी वैसे ही बात की। मुझसे बोला कि मामला दायर करने से क्या होगा वगैरह–वगैरह। मगर मैंने कहा, क्यों… कानून किसलिए है? क्या हमारी कोई इज्जत–आबरू नहीं है? हमारे लिए भी तो संविधान है। इस तरह काफी देर तक कहा–सुनी के बाद उस इंस्पेक्टर ने मेरी शिकायत लिखी। फिर बोला, लड़की में दम है।
मैं बिलकुल भी नहीं डरी। मुझे ऐसा लगा कि एजुकेशन से ही मुझमें कॉन्फिडेंस आया है। यही वजह है कि इंस्पेक्टर ने भी मुझसे तहजीब से बात की। मैंने इंस्पेक्टर से कहा कि जो आपका काम है, आप करिए। हम अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं। हमें वह करने दीजिए।
अदालत में केस लड़ने की हिम्मत जुटाने में सबसे बड़ा हाथ मेरी एजुकेशन का है। जब मैंने जाना कि औरतों के भी हक़ हैं तो मेरी हिम्मत बनी। यही वजह है कि मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूं और अपना खर्चा चलती हूं। मुझे सेल्फ कॉन्फिडेंस सा महसूस होता है। पढ़ाई–लिखाई की बदौलत मैंने अब तक का सफ़र तय किया है। अगर मैं पढ़ी–लिखी नहीं होती तो दर–दर भटकती रहती। दूसरों पर निर्भर रहती। पढ़ाई–लिखाई की वजह से मैं आज दो पैसे कमा लेती हूं।